अनकही
छीन मेरे अधिकारो को
बोलो तुमने क्या पाया
साथी बन यूं साथ चले
साया भी साथ न आया
पलट गया समय आज
अब हम से तू मैं हुये हैं
भावों से अंजान हैं दोनों
क्यूं राह एक चले हैं
भरी हुई आंखें खाली हैं
गूंगी बन गई भाषा
बोलो से मोहताज निराशा
थक गई अब आशा।