अध्यात्म विमुख होता जग
“एक दुविधा सी मन में उठती है
दिल असमंजस से भर जाता है
ज्ञान की डोली में जब कोई
विद्या की अर्थी छोड़ जाता है ,
करके शिक्षा का उद्यमीकरण
जब ज्ञान को दबाया जाता है
चढ़के दर्शन की बलि वेदी पर
उच्छृंखलता को अपनाया जाता है ,
पैरों में पहनने वाले जूते जब
शोरूमों में सज शान बढ़ाते है
जीवन की आधार शीला शिक्षा
जब फुटपाथों पे बेचे जाते है ,
विश्वविजयी जो बनना है तो
शस्त्र,शास्त्र को अपनाना होगा
हुए अगर जो वंचित इनसे
तो इतिहास को फिर दुहराना होगा ||”