अधूरे ख्वाब
अपनी मायूसी छिपाने के लिये,
हंसी चेहरे पर दिखाता रहा ।
दिल पर चोटें लगी बहुत,
मगर जख्मों को छिपाता रहा ।।
रोशनी से डर जाता हूं मैं अक्सर,
इसलिये अंधेरों में रहा करता हूं ।
तन्हाई में जीता रहा हूं अब तक,
इसलिये महफिल में जाने से डरता हूं ।।
बादलों का गर्जना ही काफी नहीं होता,
उनका बरसना भी लाज़मी है ।
ख्वाब मुकम्मल नहीं होते कभी,
उसके लिये तरसना ही पड़ता है ।।
ख्वाबों को पूरा होते हुये,
सिर्फ किताबों में ही देखा है ।
हकीकत मे तो ख्वाबों को बस,
सिर्फ उधड़ते ही देखा है ।।
कवि संजय गुप्ता (सिंगला)
मोगीनन्द,नाहन ।
जिला सिरमौर,(हि०प्र०)
मोबाइल 9882521555