~ अधूरा रिस्ता ~
तुमसे जुदाई का हर मंज़र
आँखों से मेरे क्यों जाता नही
कोई भी लम्हा क्यों न हो
दिल पल भर को चैन पाता नही
माना थोड़ा सा बेपरवाह हो तुम
फिर भी प्यार कम होता नही
शिकवे तो बहुत है तुमसे मुझे
पर बयां एक भी हो पाता नही
जो झाकु दिल के झरोखे से कभी
तो क्यों दीदार तेरा हो पाता नही
क्यों इतना दूर घर बनाया तुमने
तेरे घर का रास्ता मुझे समझ आता नही
दूरियां इतना भी न थी दरमियाँ हमारे
तू चाहता तो क्या वो मिटता नही
अपने साथ इतनी दूर तक तुम ले आये
अब दो पल मेरे पहलू में क्यों बैठता नही
कितना कुछ कहना सुनना है तुमसे
क्यों तन्हा कभी मुझसे मिलता नही
बहुत दर्द देती है तेरी कड़वी बातें
शायद तुम्हे मेरे दर्द से फर्क पड़ता नही
कुछ तो होती मेरे ख्वाबो की भी
अब कोई ख़्वाब आँखों में नींद लाता नही
अगर मेरा है तो पूरा मेरा हो जा
यू अधूरा रिस्ता अच्छा होता नही