अधूरा एहसास(कविता)
अधूरा एहसास
सुन ए हवा होली से
बन जा तू गीत मेरे मेरे मीत का
कर तो जरा मेरा अनुग्रह तू स्वीकार
आखिर क्यों है तुझे इनकार
क्या मेरी संवेदनाओं से
तेरा हृदय दर्वित नहीं होता
या फिर मेरी अनुभूति में
तुझे मेरी तुरही का आभास होता है
हां मुझे व्यक्त नहीं करना आता प्रेम
मगर मीत है वो मेरा
हां नहीं बांध सकती मैं
प्रेम के बंधन में तुम्हें
क्योंकि प्रेम तो सदा उन्मुक्त रहा है
ए हवा, बस मेरा है इतना ही कहना
बस दे देना, मेरा अनुराग का यह स्पर्श
मेरे मीत को
जरा कहना जाकर
अधूरा है मेरा हर एहसास
मीत के बिना
जरा जाकर छोड़ आना कुछ एहसास मेरे
मेरे मीत के दिल में
और कहना कि है, कोई जो निहार रहा है बाठ तुम्हारी
कह रहा की ,अब लौट आओ मीत मेरे