अधिकार और कर्तव्य
अधिकार और कर्तव्य चल सकते है साथ ,
मगर इसमें समजस्य का है बहुत बड़ा हाथ ।
अधिकार और कर्तव्य सुरक्षित रहते हैं वहां ,
समदृष्टि भी मिलाए इन हाथों में अपना हाथ ।
न्याय – अन्याय पर संदेह का प्रश्न नहीं उठता ,
जब नेक नियति व् विवेक का भी मिले साथ ।
बात चाहे राष्ट्र हित में हो या गृहस्थ जीवन के हित,
सभी जन चलें अपने अधिकार व् कर्तव्य के पथ ।
ना कर्तव्यों का कोलाहल ,न अधिकारों की जंग ,
अपने अपने धर्म का पालन करे मिलकर साथ ।
बहुत आवश्यक है वर्तमान में यह नियम पालन ,
अधिकार और कर्तव्यों का हो सुदृण/सुन्दर साथ ।