अधर्म का उत्पात
अधर्म का उत्पात
धर्म के लिए मरने- मारने को कुछ इंसान है तैयार,
पर धर्म के पथ पर चलना नहीं है उन्हें स्वीकार।
ये उन्मादी मानते हैं अधर्म ही है धर्म का आधार,
जिसके हेतु आतंक और हिंसा हैं उनके हथियार।
आज विश्व देख रहा ह्रदय-विदारक दृशय अपार,
निर्दोष ,निहत्थों नागरिकों पर पाशविक निर्मम वार।
नारियों का बलात्कार;दिल दहलाती चीख-पुकार,
खून से लथपथ क्षत-विक्षत लाशों के लगे अम्बार।
आकाश से बरसती बारूद की बरसात घनघोर,
धराशाही होते भव्य भवनों का कर्ण-भेदी शोर,
गूंजता विकास का विलाप व्याप्त है चारो ओर,
अनवरत नाच रहा उन्मत विनाशआनंद-विभोर।
कैसी है यह आस्था ! कैसा है यह विचार !
खड़ा है आज संसार महायुद्ध के कगार ,
सनातन-धर्म मानता है सर्वसंसार को एक परिवार,
उसी के प्रकाश से मिटेगा अज्ञानता का अंधकार।
महान दार्शनिक सिसरो का कथन दर्शाता है सत्य कठोर-
“आदमी स्वयं ही होता है अपना शत्रु घोर” ,
आज जो मना रहे हैं अधर्म का उत्सव मचा कर शोर,
निस्संदेह सर्वनाश ही है उनका अंतिम निश्चित ठोर।
डॉ हरविंदर सिंह बक्शी
19 10-2023