अद्भुत खेल बरसात
ठंड़ गर्मी और बरसात
ऋतु चक्र प्रकृति अनुसार।
वैसे तो आवश्यक सब
कभी कभी बनते प्रहार ।
बरसात का भी अजीब खेल
रहस्य कोई समझ न पाया ।
कहीं मचा दे खूब तबाही
कहीं पानी को तरसाया।
बाष्प बन पानी उड़ता
ऊपर जा फिर बादल बनता ।
हवा संग उड़ता फिरता
ठंड़ा होकर जमी बरसता।
यही खोज विज्ञान बताता
कम दाव पर जल बरसाता।
फिर भी मन में होती शंका
एक समान क्यों नहीं गिरता ।
कहीं मूसलाधार बरसता
कहीं कहीं तो सूखा पड़ता ।
मानसून आने जाने का
समय निर्धारित कैसे होता ।
बारह मास तो चलें हवाएँ
इसी मौसम जल क्यों गिरता ।
कौन करता इनको प्रेरित
कौन सही मार्ग बताता है ।
कह सकते पृथ्वी की गति
मौसम बदलाव कारक है ।
पर पृथ्वी की नियत चाल
कौन निर्धारित करता है ।
मानव ज्ञान जो जान सका
संतोष तो उसपर होता है ।
पर प्रकृति का अद्भुत खेल
मदारी स्वयं विधाता है ।
राजेश कौरव सुमित्र