अथक परिश्रम
सोच रहा है व्याकुल मन,
बरसेगा घनघोर घना-घन,
तृप्ति मिले कैसे रहकर ,
जल में डूबा भास्कर का बिंब ।
उलझे बीच भंवर में ,
विषधर व्याल मथ रहा सागर के मंथन को ,
जल की अमृत बूँदे पड़ी व्याकुल मन में ,
हरियाली का अंश बने अथक परिश्रम ।
मंथन का विष कम्पित किया ,
हृदय विदारक ओले पिंड ,
बह रहा है धरा पर ,
चंदन मोती रत्न पड़े ।
अमृत प्याला पीने को ,
व्याल समक्ष जाए कौन ,
हाहाकार मचा हुआ ,
अन्न को काल पड़ा ।
घातक यह रक्त रंजित यह,
कार्य में प्रतिभा कैसी यह,
असंतुलित कर मंथन कर,
पहचाना न दोहन क्यों ।
खोज रहे अब आसमान पर उस सूरज को,
ला देगा जो विष घूंट पीकर,
सागर से अमृत की बूंँदें ,
हरियाली फिर वसुंधरा पर होगा यह अथक परिश्रम ।
#बुद्ध प्रकाश ; मौदहा