अतीत के पन्ने (कविता)
अतीत के पन्ने*
कुछ अतीत के किस्से
जो कभीं ना धुंधले पड़ते है
पलटती हू जब भी जीवन के पन्ने को
कर देते है उदास मेरे जीवन को ये
ज़रा सी आहत से
खड़े हो जाते है, अतीत के पन्ने मेरे सामने
पलटती हू उन पन्नों को बार बार हर बार
आँख बंद करके
दिल की गहराईयों से जुड़ी यादे
बार बार मेरे सामने आकर हो जाती है खड़ी
आखिर क्यों जिंदगी के पन्ने भुलाए नहीं भूलते
क्यों गुजरा हुआ कल आज पर भारी हो जाता है
माना कुछ रिस्तों में हार गई
मगर कहीं रिश्ते बंधे भी तो है
माना मैंने कुछ ज़्यादा तो नहीं पाया
जो पाया वो खोने से कम तो नहीं
फिर भी आखिर क्यों मन
विचलित हो जाता है
और हमेशा अतीत के पन्नों को
पलटता रहता है बार बार हर बार