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14 Feb 2017 · 1 min read

अति सुन्दरतम् ऋतु सावन

??????
?अति सुन्दरतम् ऋतु सावन की आई बहार ।
सूर्य से तपती धरती को था, जिसका इन्तजार ।।

प्रतिपल परिवर्तित नूतन साज श्रृगार ।
?नव किशलय का हरित विहार ।

?सुन्दर अलंकृत, सजीव मनोरम,
प्रकृति को मिला सौन्दर्य उपहार ।

? धानी चुनरिया पहने धरती,
अंबर को मिला इन्द्रधनुष का सतरंगी हार ।

? चहुँ ओर प्रकृति का अह्लाद,
मस्त मगन हो नाच उठा संसार।

? उमड़ – घुमड़ घन अम्बर छाया,
सीतल – मंद बहे पूरवैया, ठंढी परत फुहार ।

?हंस पुकारे, तीतर गाये, कोयल कूँके,
करे पपीहा पीऊँ – पीऊँ की पुकार ।

?झिंगुर बोले, मेढ़क की टर्-टर्,
कीट-पतंगा,भवरों की मीठी गुंजार ।

?बादल गरजे, बिजली चमके,
नभ से बरसत मुसला धार।

?चाँद छुपता, कभी निकलता,
जुगनू रात में टिम-टिम करता,
रह-रह बरसती वह ऐसी रसधार।

?छत, छज्जा, पीपल पत्तों पर
जल-तरंगों की बजती झनकार।

?सावन आया संग-संग लाया
कितने सारे पर्व-त्योहार।

?जन्माष्टमी, श्रावणी-खीर, हरियाली तीज,
आई रक्षा-बंधन , भाई-बहन का प्यार ।

?काँवर लेकर चले कवड़िया
अमरनाथ सावन के शुभ सोमवार।

?रूनझून-रूनझून काँवर बाजे,
गूँजे बोल बम, बम की जयकार ।

?पायल बाजे, नाचे मोर,
नाचे वृज की नारी,
कोई गावत गीत मल्हार ।

?मेंहदी रचाती, मंगल गाती,
करे सुहागन, प्रीत की मनुहार ।

?प्रेम-अग्नि से तपती, असिंचित,
हृदय को मिलती शीतबयार ।

?घर – घर झूला, झूले गोपियाँ,
झूला पड़े कदम्ब की डार ।

?राधा के संग श्री कृष्णा झूले,
मंद-मंद बहे यमुना की धार ।

?अति सुन्दरतम् ऋतु सावन की आई बहार ।
सूर्य से तपती धरती को था जिसका इन्तजार ।।
??लक्ष्मी सिंह ??

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