अतिथि
आज सुबह सुबह उषा बेला में
किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी
आधी अधूरी नींद से जाग कर
बेमन से दरवाजा खोला तो पाया
एक अजनबी सिर झुकाए खड़ा था
बड़े अदब से पूछने पर बताया मुझे
मैं आज से आप का अतिथि हूँ
साल भर के लिए आया हूँ
अपनी झोली में खुशियां लाया हूँ
365 दिन 52 हफ्ते और 12 महीने
मैं आप सबके परिवार का सदस्य हूँ
मैं नई आशाओं से भरा 2022 हूँ
मैंने उसको पहले ऊपर से नीचे तक देखा
और बोला पिछले साल भी एक शख्स आया था
खुशियों से भरा पिटारा वो भी लाया था
पर उसने सबको खूब रुलाया था
तुम में और उसमें फर्क नज़र नहीं आता है
खुशियों की आड़ में छिपा दर्द सहा नही जाता है
मेरी दहलीज़ तो तुम लांघ के आ जाओगे
पर वादा करो तुम किसी को नही रुलाओगे
अब तो आंखों के आंसू भी सूख चुके हैं
शूलों की चुभन हम झेल चुके हैं
अब कोई नही है मेरे पास कुछ और खोने को
आये हो तो आ जाओ पर मुझे चैन से सोने दो
उसने मुस्कुरा कर कदम दहलीज़ के पार रखा
अपना हाथ चुपके से मेरे सिर पर रखा
उसकी आँखों की चमक में एक नई उम्मीद थी
पर मेरे मन के कोने में डर और आंखों में नींद थी
मैंने भी मुस्कुरा के आने का रास्ता दे दिया
2021 का खाली कमरा 2022 को दे दिया