अतिथि देवो भवः (हास्य-व्यंग्य)
अतिथि देवो भवः( हास्य व्यंग्य )
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अजी काहे का अतिथि देवो भवः । आजकल अतिथि मुसीबत है । अब हमारा ही किस्सा ले लीजिए । एक पुराने मित्र का दो दिन पहले फोन आया “आपके घर पर तीन दिन के लिए रहने आ रहे हैं । बहुत समय हो गया आपसे मिले हुए। विद्यार्थी जीवन की यादें ताजा करेंगे ।”
हमने दुखी ह्रदय से ताजी-ताजी खबर पत्नी को बताई। सुनकर उनका चेहरा भी हमारी तरह ही लटक गया । यह मुसीबत कहाँ से टपक पड़ी ! घर पर दो कमरे थे । एक बेडरूम, एक ड्राइंग रूम । छोटा-सा बरामदा । जगह की तो कमी नहीं थी लेकिन फिर भी प्राइवेसी में दखल किसे अच्छा लगता है ? खैर क्या किया जा सकता था !
अतिथि निर्धारित तिथि को ट्रेन से आए। ऑटो से हमारे घर पर आ टपके । हमने अंदर से रोते हुए तथा बाहर से हँसते हुए उनका स्वागत किया । वह बोले “बड़ी मुश्किल से केवल तीन दिन का समय निकाल पाया हूँ। इच्छा तो बहुत थी।”
हमने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि हमारे मित्र के पास समय का अभाव रहता है ।वरना तीन दिन की बजाए हमें शायद तीन सप्ताह के लिए अतिथि का आदर-सत्कार करना पड़ता । जिस समय अतिथि-देवता पधारे थे, रात के आठ बजे थे । ट्रेन सही समय पर आई थी ।
हमने निर्धारित योजना के अनुसार उनसे निवेदन किया ” आपका सोने का बिस्तर लगाया जाए या पहले पानी पिएँगे ?”
वह आश्चर्यचकित होकर हमारा मुँह देखने लगे । हमने उनके आश्चर्य को तनिक भी महत्व न देते हुए झटपट रसोई में जाकर एक गिलास पानी ट्रे में रखा और उनके सामने प्रस्तुत कर दिया । जल की सप्रेम भेंट धन्यवाद सहित उन्होंने स्वीकार की। तत्पश्चात कहने लगे “रात्रि भोजन का क्या प्रबंध है ? ”
हमने साफगोई से कह दिया “वह तो रात्रि सात बजे हम लोग कर लेते हैं । उसके बाद कुछ नहीं खाते हैं । कल लंच लेंगे । आपका साथ रहेगा । आनंद आएगा ।”
वह अनमनेपन से बिस्तर पर सोने चले गए । बिस्तर पर बैठते ही बेचारे उछल पड़े। कारण यह नहीं था कि गद्दों में स्प्रिंग था। कारण यह था कि बिस्तर पर दद्दा नदारद था। केवल लकड़ी का तख्त था ,जिस पर चादर बिछी थी । पुनः आश्चर्य में डूब कर मित्र कहने लगे “इस पर गद्दा नहीं बिछाया ?”
हमने कहा “आजकल गद्दा कौन बिछाता है ? सबसे ज्यादा स्वास्थ्य का सत्यानाश इन गद्दों ने ही कर रखा है । आदमी को थुलथुल और बेडौल बना देते हैं। स्वास्थ्य – लाभ करना है तो बिना गद्दे वाले बिस्तर पर सोना चाहिए। हम लोग तो मजे में हैं । इसी पर सोते हैं ।”
इस बार उनकी पत्नी जो अब तक चुप थीं, कहने लगीं” मुझसे तो बिना गद्दों के बिस्तर पर नहीं सोया जाएगा ।”
हमारी पत्नी ने उन्हें समझाया ” तीन दिन की ही तो बात है । स्वास्थ्य-लाभ के सामने आराम कोई चीज नहीं होती । आदमी स्वस्थ रहेगा तो आराम अपने आप मिलता रहेगा।”
मुँह बिगाड़ कर दोनों अतिथि पति-पत्नी बिस्तर पर सोने चले गए । अगले दिन सुबह हुआ तो हमने “गुड मॉर्निंग” कहा । उन्होंने भी प्रसन्नता पूर्वक “गुड मॉर्निंग” बोला ।
“रात कैसे गुजरी ? आनंद से स्वास्थ्य लाभ हुआ होगा?” हमने उनसे पूछा । वह कुछ कहना चाहते थे किंतु कह नहीं पाए ।हम समझ गए कि लकड़ी के तख्त पर भला कैसे नींद आती ?
कुछ देर तक हम अतिथियों के साथ बातें करते रहे । धीरे – धीरे समय बीता जा रहा था । जब नौ बज गए ,तब अतिथि देवता चाय के बारे में पूछने लगे “क्यों बंधु !आपके यहाँ चाय कितने बजे बनती है ? अब तो नौ बज गए ।”
हमने उन्हें समझाया “राम का नाम लो ! चाय स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक हानिकारक है । सारे अवगुण चाय में भरे हुए हैं । यह तो अंग्रेजों ने हमें चाय पिलाना सिखा दिया वरना स्वच्छ जल में जो लाभ हैं, वह संसार में किसी अन्य वस्तु में नहीं हैं।”
अतिथि गण आश्चर्य से पुनः पूछने लगे “क्या आपके घर में चाय नहीं पी जाती ?”
हमने कहा “बिल्कुल नहीं । हम सीधे लंच करते हैं ।”
अब अतिथियों को और भी आश्चर्य हुआ । कहने लगे “क्या नाश्ता भी नहीं होता ?”
हमने कहा “इसका नाम नाश्ता नहीं है, अपितु नाशकर्ता है । जिस का नाश करना हो उसे नाश्ता करा दो । अगर स्वयं अपने स्वास्थ्य का नाश करना है तो नाश्ता अवश्य करो । हम न अपना स्वास्थ्य चौपट करेंगे ,न आपका । इसलिए नाश्ता न हम स्वयं करेंगे और न आपको कराएँगे । अब हम सीधे लंच ग्रहण करेंगे ।”
अतिथि देवता मन ही मन मुँह बना रहे थे । प्रत्यक्ष में तो कुछ नहीं बोले लेकिन उनकी भाव भंगिमा से यह प्रकट हो रहा था कि वह हमारी आवभगत से प्रसन्न नहीं हैं। जबकि हम उनके स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रख रहे थे ।
ठीक दस बजे बजे हमने अतिथि देवता के लिए भोजन लगाया । एक दाल और दो रोटी उनके सामने रखीं। भोजन में चटनी भी थी । रोटी का एक टुकड़ा दाल के साथ मुँह में रखते ही अतिथि देवता ने मुँह बिचकाया। पूछने लगे “यह किस चीज की रोटी है ? गेहूँ की तो नहीं लगती ?”
हमने कहा “गेहूं स्वास्थ्य के लिए उतना लाभप्रद नहीं है जितना हमारा चना – बाजरा आदि का यह आटा होता है । इसी की बनी रोटी है । तीन दिन में हमें आपका स्वास्थ्य उत्तम अवश्य करना है ।”
अतिथि-द्वय ने मुँह बिगाड़ लिया। कहने लगे “चावल तो होंगे?”
हमने कहा “चावल से मोटापा बढ़ता है। मोटापे से चलने – फिरने में दिक्कत आती है। आदमी चला – फिरी न करे तो उसे डायबिटीज तथा हृदय के रोग हो जाते हैं। भला कौन स्वयं को इन रोगों का शिकार होने देगा ? अतिथि को तो कदापि नहीं ? इसलिए हम आपके स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए आप को भोजन करा रहे हैं।”
अतिथि देवता ने कुछ और चौड़ा मुंह बिगाड़ा । “सब्जी तो बनी होगी ?”-उनका अगला प्रश्न था ।
“वह तो आपको रात्रि सात बजे भोजन पर उपलब्ध होगी । भाँति-भाँति की सब्जियाँ आप को डिनर के समय उपलब्ध कराई जाएंगी । उनका रसास्वादन लीजिए।”
दोनों अतिथि देवों ने आधा – पौना पेट दाल रोटी के साथ चटनी लगाकर भरा । तदुपरांत हमने उन्हें एक एक गिलास में पानी भेंट किया और कहा ” भोजन के उपरांत पानी ग्रहण कीजिए ।”
वह हमारी ओर आश्चर्य से देखने लगे। कभी हमारे चेहरे को देखते थे ,कभी पानी को देखते थे । एक बहुमूल्य पदार्थ के रूप में उन दोनों ने एक – एक गिलास पानी को ग्रहण किया । हमने उनसे कहा “जल ही जीवन है ।” वह सहमति की मुद्रा में सिर हिलाने लगे ।
उसके बाद हमने कहा “थोड़ा टहल आइए। कॉलोनी में काफी खुली जगह है। आपको आनंद आएगा । ”
हमारी सलाह मानकर वह टहलने चले गए । टहल कर तीन घंटे में आए । हमने पूछा “क्या बात है ,बहुत देर टहल लिए।”
वह बोले ” सच्ची बात तो यह है कि थोड़ी दूर पर एक भोजनालय दिखाई पड़ गया । सो हम दोनों ने वहीं पर बैठकर कचौड़ी – सब्जी खा कर पेट भर लिया।”
हमने लगभग चिल्लाते हुए उनसे कहा “हम आपके स्वास्थ्य का ध्यान रख रहे हैं और आपने अपना स्वास्थ्य चौपट कर लिया । कचौड़ियाँ अगर तीन दिन तक खाएंगे तो स्वस्थ कैसे रह पाएंगे ? बीमार पड़ जाएंगे?”
वह मुस्कुराकर कहने लगे “अगर हम केवल आपके द्वारा प्रदत्त भोजन करेंगे ,तब बीमार अवश्य पड़ जाएंगे ।”
तत्पश्चात अतिथि देवता का जब गुस्सा शांत हुआ तब एक कप चाय माँगने लगे । हमने उन्हें पुनः स्मरण दिलाया ” चाय का प्रयोग हमारे घर पर वर्जित है । यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । यह बात हम आपको पहले ही बता चुके हैं ।” उन्होंने हमारी बात से सहमति व्यक्त की और कहा कि गलती हो गई ।
तदुपरांत उनका अगला प्रश्न था ” क्या शाम को नाश्ते की व्यवस्था है ?”
हमने उन से निवेदन किया कि हम आपको कितनी बार बताएं ” नाश्ते का वास्तविक नाम नाशकर्ता है ,अतः हम न तो स्वयं नाश्ता करते हैं और न आपको नाश्ता कराएंगे । आपके स्वास्थ्य का हमें पूरा ध्यान है ।”
दुखी होकर दो घंटे बाद अतिथि-देवता पुनः टहलने के लिए गए और संभवत किसी भोजनालय से नाश्ता करके लौट आए । रात को सात बजे हमने उन्हें दो-तीन सब्जियों की मिश्रित सब्जी पुनः स्वास्थ्यवर्धक आटे की रोटियों के साथ प्रस्तुत की।
वह पूछने लगे “कुछ मिठाई का प्रबंध नहीं है ? ”
हमने कहा “मिठाई स्वास्थ्य के लिए जहर है । मिठाई खाने का अर्थ है अपने शरीर को बेडौल और बदसूरत बना देना। भला हम आपके साथ यह अन्याय कैसे कर सकते हैं?”
अब अतिथि देवता को हमारा आतिथ्य स्वीकार करते हुए चौबीस घंटे हो चुके थे । रात के आठ बजे थे । दोनों अतिथि देवताओं ने उचित समय जानकर हमसे हाथ जोड़कर विदा माँगी और कहने लगे “बंधु आपने चौबीस घंटे में हमारा पर्याप्त रूप से स्वास्थ्य – लाभ करा दिया है । अब हम इससे ज्यादा अपने स्वास्थ्य को लाभ नहीं देना चाहते ।हमें अपने घर जाने की अनुमति दीजिए।”
हमने आश्चर्यचकित होकर पूछा “आप तो तीन दिन के लिए स्वास्थ्य-लाभ करने आए थे और हम आपको स्वास्थ्य लाभ प्रदान करना भी चाहते थे । लेकिन यह बीच में स्वास्थ्य-लाभ पूरा किए बिना ही आप जाना चाहते हैं ,तो हम मना तो नहीं कर सकते लेकिन समय निकालकर फिर कभी एक-दो दिन के लिए आइए तथा हमारा आतिथ्य स्वीकार कर के स्वास्थ्य-लाभ अवश्य ग्रहण करें ।”
अतिथि देवता जल्दी में थे । उन्होंने हमारी बात सुने बगैर ही झटपट हमारे घर के दरवाजे से सड़क की ओर दौड़ लगा दी ।जब दूर चले गए तो हमने घर की कुंडी बंद की और पुनः घर के बिस्तरों के ऊपर गद्दे बिछा दिए । एक कप चाय चौबीस घंटे बाद हमने पी । उस का आनंद ही कुछ और था ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
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