अज्ञानता निर्धनता का मूल
अक्षर से कर मित्रता,शूल बनेगा फूल।
होती है अज्ञानता, निर्धनता का मूल।। १
मनुज गरीबी है बना, बहुत बड़ा अभिशाप।
अर्जित करके ज्ञान को,करो दूर संताप।। २
शिक्षा-दीक्षा ताक पर,रखता सदा गरीब।
बचपन बोझा ढ़ो रहा,देता दोष नशीब।। ३
अनपढ़ रहता है दुखी,करे गरीबी वार।
पढ़ लिख कर बनना सुखी,शिक्षा है तलवार।। ४
विद्या में ताकत बहुत,टूटे हर जंजीर।
पढ़ा-लिखा इंसान ही,लिखता है तकदीर।। ५
दीप जलाकर ज्ञान का, करो गरीबी दूर।
शिक्षा है संजीवनी,पाकर बढ़ता नूर।। ६
दूर अँधेरा हो गया,उदय हुआ जब ज्ञान।
अक्षर-अक्षर ज्ञान से, बनता मनुज महान।।७
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली