अजीब रिश्ता – डी के निवातिया
अजीब रिश्ता
***
अजीब रिश्ता बन जाता है कुछ लोगो के साथ,
अजनबी होते हुए भी, अपने से लगने लगते है !!
दिल जानता है ख्वाब मुक़्क़मल हो नहीं सकते,
फिर भी जागती आंखों में सपने सजने लगते है!!
न खबर होती है कोई, न पता ठिकाना होता है,
बातो में फिर इक दूसरे का नाम रटने लगते है !!
मतलब न होकर भी इतना हो जाया करता है की,
यादो में हमेशा दूजे की फिर आहें भरने लगते है !!
न जाने कब वो दूसरे के इतने अजीज बन जाते है,
अजनबी होकर भी आपस में तकरार करने लगते है !!
!
डी के निवातिया