अजीब मानसिक दौर है
अजीब मानसिक दौर है
अजीब मानसिक दौर है रिश्ते खूब अपने हैं पर कोई सुनने वाला नहीं रिश्ते खूब सजने हैं मगर कोई नहीं जिसको बोल सके बिना सोचे रिश्ते खूब सारे हैं फिर क्यों अकेला है अंदर से इंसान
रिश्ते इतने अपने हैं की समझ नहीं पा रहे अपने अंदर का शोर मेरा रिश्ते इतने दिल के हैं की वक्त बस बहाना रह गया है अपनेपन के रिश्तों में रिश्ते क्यों हैं आस पास इतने जब वजूद खाली है
इन रिश्तों का नियत से उम्मीद की थी संभाल लेंगे रिश्ते पर आज कल इंसान मर रहा है उम्मीदें फितरत से इन रिश्तों में अंदर ही अंदर