अजि अर्ज किया है
डा ० अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक * अरुण अतृप्त
मिरी आशिकी तेरी शब् से बेहतर न हो पाएगी
तिरे गाम के मौढ़ा के आगे तो ये झुक जाएगी //
फलक से उतरेंगे सितारे और दिलकश चन्द्रमा
फिर फिज़ां ये चमक चाँदनी सी जगमगायेंगी //
सांस रोक लेगा तब चमन का कतरा कतरा
आए हाए तिरी पैजनियाँ कसम से छन छनायेंगी //
मैं सुर नही जानता न ही आगाज़ के अन्दाज़ को
कसम से ऐसे मौसम में थाप फिर भी सबको लुभायेगी //