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6 Jun 2018 · 1 min read

अजब दुनिया है ए मालिक….

अजब दुनिया है ऐ मालिक ग़ज़ब इसके नज़ारे हैं
कहीं आखों में पानी है कहीं जलते शरारे हैं

कहीं मूरत करे भोजन मजारों पर चढ़े चादर
कहीं भूखी निगाहें एक टुकड़े को निहारे हैं

सिसककर ज़िंदगी जिस राह पर दम तोड़ देती है
वहीं मंदिर बने हैं मस्जिदें हैं गुरू दुआरे हैं

नज़र में आसमां उनकी है जो महलों में रहते हैं
जमीं पर रह रहे हैं जिनकी पलकों पर सितारे हैं

जुदाई है मुक़द्दर में तो उसका साथ नामुमकिन
मुसल्सल साथ चलकर हम नदी के दो किनारे हैं

जो क़िस्मत हाथ में लेकर चला है वह सिकंदर है
सहारा ढूंढते “मासूम” जो किस्मत के मारे हैं

मोनिका “मासूम”
मुरादाबाद

1 Like · 268 Views
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