तुम्हें ये आदत सुधारनी है।
गज़ल
121….22……121…..22
तुम्हें ये आदत सुधारनी है।
ये जिंदगी को सॅंवारती है।
मिटा दे हिरदय का जो ॲंधेरा,
वो ज्ञान दीपक की रोशनी है।
जिसे तू छोड़ाया आश्रम में,
वो मां अभी भी पुकारती है।
वो बुझती आंखों की रोशनी से,
तेरी ही तस्वीर देखती है।
समझ रहा है जिसे उजाला,
तू खोल आंखें वो तिरंगी है।
ये छोड़ दौलत,पकड़ ले रिश्ते,
न बुझने वाली ये तिश्नगी है।
तू प्यार कर ले जहां से प्रेमी,
के सच में यारा ये बंदगी है।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी