*अजन्मी बेटी की गुहार*
जीने का अधिकार मुझे दे…..
ओ मेरी मैया, सुन मेरी मैया,
बस थोड़ा सा प्यार मुझे दे…..
माटी से
और रंगों से
ईश्वर मुझको बना रहा है ;
तू भी कर इसमें सहयोग –
वरना मेरे जीवन का
हो न सकेगा संयोग –
तेरे लहू और दूध बिना –
कैसे विकसित हो पाऊँगी ?
तुझसे रोकर करूँ प्रार्थना –
धड़कन का अवलंब मुझे दे,
साँसों का आधार मुझे दे…..
मैं आऊँगी तो
तेरे घर-आँगन में
खुशियाँ ही बरसाऊँगी –
तेरे दुःख में, तेरे सुख में,
मैं तेरा साथ निभाऊँगी –
सब अपनी अपनी किस्मत लेकर
इस दुनिया में आते हैं –
और अपना अपना जीवन जी कर
इस दुनिया से जाते हैं –
है करबद्ध विनती मैया
मेरे हिस्से का संसार मुझे दे…..
यह मत कहना कि
मुझको लाने से
तुझे दुनियावाले रोक रहे हैं ;
तू भी तो एक बेटी है
क्या मेरे लिए लड़ न सकती ?
अपनी ज़िद से या मनुहार से,
अपने हक़ से या तनिक प्यार से,
उनका मन परिवर्त्तन
कर न सकती ?
इस दुनिया में आने का
बस मौका एक बार मुझे दे…..
यह तेरा ही निर्णय होगा
कि तेरी कोख़ में रहूँ मैं ज़िन्दा –
कहीं ऐसा न हो कल मुझको खो कर
ईश्वर के सम्मुख
होना पड़े तुझे शर्मिन्दा –
और नहीं कुछ चाहूँ तुझसे –
और नहीं कुछ माँगूँ तुझसे –
बस अपनी काया का थोड़ा
रंग, रूप, आकार मुझे दे…..
और कहो माँ
क्या मुझे मिटा कर
तू इक पल चैन से रह पाएगी ?
क्या इस पाप का भारी बोझ
अपने हृदय पर सह पाएगी ?
तेरी ममता पर अटकी
है मेरी साँसों की डोर ;
मजबूती से थामे रहना –
मातृत्व का अपमान न करना –
माँ तुझको तेरी माँ की कसम
अपना घर परिवार मुझे दे…..
कल जब तुझसे उस दुनिया में
सृष्टिकर्त्ता पूछेगा –
कि क्यों तूने उसकी कलाकृति को
बनने से पहले नष्ट किया ?
सच कहना माँ क्या तुझको
कुछ इसका उत्तर सूझेगा ?
तू भर जाएगी ग्लानि से –
फिर कैसे नजर मिलाएगी तू
अपनी माँ और नानी से –
फूल भले रख अपने हिस्से
बस काँटों का हार मुझे दे…..
ओ मेरी मैया, सुन मेरी मैया
जीने का अधिकार मुझे दे…..
बस थोड़ा सा प्यार मुझे दे….
©पल्लवी मिश्रा, दिल्ली।