अजनबी
आज फिर उनसे मिल गई नजर हैं
अजनबी सा लग रहा यहाँ नगर है
हाथ ना आएगा जो पल गुजर गया
आज अब लोट जाओ यही हसर है
कोशिशें लाख की पर नहीं माने वो
दोष ना दीजिए जमाने का असर है
चाँद कितना सुन्दर छिपता है मगर
चाँद को पाने की बस लगी लहर है
जीत कर भी यहाँ हार होती सदा
प्रेम राह चलने की कठिन डगर है
आज फिर उनसे मिल गई नजर है
अजनबी सा लग रहा यहाँ नजर है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत