✍️अजनबी की तरह…!✍️
✍️अजनबी की तरह…!✍️
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ये दर-ओ-दीवार किसी अजनबी की तरह
ये शहर मुझसे मिलता है अजनबी की तरह
उसके दीवार पे पाठशाला वाली तस्वीर थी
आज वो दोस्त मिला था,अजनबी की तरह
अंजानी राह में किसी ने मुझसे रास्ता पूँछा
उनसे मुलाक़ात हो गयी अजनबी की तरह
मुश्ताक़ तौबा भीड़ होती थी कल तक यहाँ
आज महफ़िल रुसवा है अजनबी की तरह
उम्र भर एक झूठ मेरा हमसाया बनकर रहा
वो सच से मिला तो एक अजनबी की तरह
इतने भरे नहीं थे वो प्याले के मैं गिर जाता
मैक़दे में खड़ा हूँ ,किसी अजनबी की तरह
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✍️”अशांत”शेखर✍️
01/06/2022