Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Jan 2017 · 5 min read

अछूत

अछूत
—————-

जिस समाज में वो जन्मी थी , वो बहुत समय से मनुष्य की विष्टा उठाने का काम करता रहा था पर जैसा उसके घर के बुजुर्ग बताते थे , एक बहुत लम्बी कहानी थी । आज तक उसको यही बताया गया था कि उसके परिवार के दादा , पितामह यहाँ तक कि पिता और माँ भी यहीं काम करते आये थे । उन्हीं की पीढ़ी में होने के कारण वह जाति से शूद्र थी। नाम सोना था ।
प्राय : रोज सुबह उठ अपने ताम -झाम के साथ वह माँ से यह कहती हुई चली जाती , ” माँ, मैं अभी पिछवाड़े की कालोनी का काम सिलटा के आती हूँ ।” इतना कहकर चली जाती । प्रत्युत्तर में माँ कहती , जा बेटी , अच्छे से जाना , कहीं फालतू रूकना
मत ।

पिछवाड़े की कालोनी में जा कर झाडू लगाती एवं मैला साफ करती । पास में ही एक परिवार रहता जिसकी मालकिन काफी सम्भ्रान्त थी अपने चबूतरे पर बैठ जाने देती और खाने पानी की पूछती तो सोना कभी खा लेती तो कभी रखकर घर ले जाती ।
पर समय एक जैसा नहीं रहता , समय बदलने के साथ – साथ सोच में परिवर्तन हुआ । तकनीकी के युग में अब विष्टा उठाने जैसा काम नहीं होता है । शौचालय भी आधुनिक टेक्नीक लैस होने लगे है ऐसे में अपने परम्परागत कार्य को छोड़ देना स्वभाविक ही था और लोगों को देख उसने भी पास के विधालय में दाखिला ले लिया सब छात्राओं के साथ बैठकर पढ़ने से कभी उसे आभास नहीं होता था कि वह किस जाति की है । उसको बड़ा अपनापन सा लगता था टीचर्स और छात्राओं के मध्य। क्क्षा ऐसा समुदाय था जहाँ ऊँच -नीच का भेद न था सभी समान था जिस जमीं पर सब बैठते उसी पर वो । लेकिन वो यहाँ शूद्र न थी क्योकि जाति – पाँति का कोई भेद न था , शाम को जब पढ कर लौट जाती माँ के साथ हाथ बंटाती ।
कुछ समय बाद गाँव की डिस्पेन्सरी में एक डॉ साहब ट्रान्सवर होकर आये । अभी – अभी शहर से आने के कारण गाँव के तौर – तरीकों एवं लोगों से अनजान थे । जो गाँव में ही रूम लेकर रहने लगा । वो जहाँ रहता था वहाँ से सोना का मकान स्पष्ट दीखता था । एक रोज जब वह बीमार हो गई तो माँ के साथ डॉ बाबू के क्लीनिक पहुँच गई । बीमारी को बता और दिखा दवा ले गयी ।
लेकिन डॉ बाबू जो अभी तक कुँआरे थे सोना के सोनवर्ण रूप पर ऐसी आसक्ति हो गई कि रोज सुबह उठकर डॉ बाबू घूमने जाने लगे। घूमने का मार्ग भी डॉ बाबू के घर से ले सोना तक के घर तक जाता था । जैसे जैसे समय बीतता गया डॉ बाबू गाँव के तौर – तरीकों से परिचित हो गये । डॉ बाबू के मन में एक अन्तर्द्वन्द चल रहा था , धीरे आस – पास के लोगों से पता लगा कि डॉ बाबू की चाह का केन्द्र बिन्दु जो लड़की है वह जाति से शूद्र है । यह पता चलने पर डॉ बाबू ने मन पर रोक का अंकुश लगाना चाह ।
पर प्रेम किसी भी जाति – बंधन में कैद नहीं होता । वह ऊँच – नीच , जाति – पाँति से हट कर दिल की भाषा जानता है । बहुत कोशिश के बाबजूद जब डॉ बाबू अपने पर नियन्त्रण न कर पायें तो अपने प्रेम का इजहार सोना से कर बैठे । लेकिन सोना की माँ को यह स्वीकार न था कि उसकी बेटी डॉ बाबू से प्रेम करे । न ही गाँव वालों को और न सोना के परिवार को यह स्वीकार था । डॉ बाबू से सोना को दूर रखे जाने की बिरादरी वालों ने बडी कोशिश की पर सोना की बेकाबू जवानी अपने पर नियन्त्रण नहीं कर पायी । अन्ततः दोनों ने मंदिर में शादी कर ली । जब यह बात पंचायत तक पहुँची तो पंच इस मुद्दे पर एकमत नहीं हो पायें । परिणामस्वरूप दोनों को गाँव से निकाला दे दिया और सोना की माँ का हुक्का पानी बंद कर दिया गया ।

गाँव से अपना सामान बटोर डॉ बाबू शहर में आ बस गये
यहाँ पर अपनी प्रेक्टिस शुरू कर दी यहाँ सोना भी साथ पत्नी की तरह रहने लगी । आजाद ख्याल वाले डॉ बाबू पर इस घटना का इतना असर न था जितना कि सोना कि माँ पर। गाँव से जब भी कोई आता था इलाज के लिए तो वो सोना और उसकी माँ के घाव को हरा कर जाता जैसे विवाह कर कोन सा डॉ बाबू ने अपराध कर दिया हो ।
जब रोज -रोज की सुनकर डॉ बाबू तंग आ गये तो सोना की माँ को अपने पास बुलवा लिया । सोना की माँ भी साथ रहने लगी । घर पर माँ बेटी रहते डॉ बाबू का सारा समय क्लीनिक पर ही जाता । धीरे – धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा था ।सोना भी गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया धीरे -धीरे वो बड़ा हुआ तो नाम तो उसे डॉ बाबू का मिला था डॉ बाबू ने कोशिश की कि सोना की जाति बिरादरी की कोई भी परछाई बालक पुरु को न छुए इसलिये उसे दूर आवासीय विद्यालय में भेज दिया ।
अब जब उसका बेटा बड़ा हो गया तो कोई उसे अछूत के नाम से नही जानता था ।सोना डॉ की पत्नी और बेटा पुरु डॉ का बेटा था । वक्त बीतने के साथ – साथ एक विशेष जाति का भास कराने वाली भावना समाप्त हो गई थी और सोना का दायरा उसकी जाति विशेष तक सीमित न होकर उच्च जाति को छूने लगा था ।
एक बार फिर सोना और माँ को लगता था कि समाज में जाँति – पाँति की खाई मिट गई और सब एक छत के नीचे आ गए है ।

संक्षिप्त परिचय ?
—————————

. पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी
पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर साइंस आगरा
प्राचार्या,पोस्ट ग्रेडुएट कालेज
आगरा
2012 से फेसबुक पर सक्रिय

साहित्यिक सफरनामा :

विद्यार्थी जीवन स्कूल की मैगजीन में छपा करती थी तत्पश्चात कैरियर की वजह ब्रेक हुआ फिर वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारी के कारण बाधित
जनवरी , 2015 में “सत्य अनुभव है ” आन लाईन पत्रिका में प्रकाशित हुई ।

❤मैगजीन जिनमें प्रकाशित
———-☀☀☀☀☀☀☀
India Ahead
स्वर्गविभा आन लाइन पत्रिका
अटूट बन्धन आफ लाइन पत्रिका
झकास डॉट काम
हिंदी लेखक डॉट काम
अनुभव पत्रिका
जय विजय
वेब दुनिया
मातृभाषा मंच
भोजपुरी मंच
शब्द नगरी
रचनाकार
पाख़ुरी
शब्दों का उजाला
सहज साहित्य
साहित्य पीडिया
होप्स आन लाइन पत्रिका
भारतदर्शन अन्तराष्टीय पत्रिका

❤❤अखबार जिनमें प्रकाशित
——————————-
हिलव्यू (जयपुर )सान्ध्य दैनिक (भोपाल )
सच का हौसला अखबार
लोकजंग
ज्ञान बसेरा
शिखर विजय
नवएक्सप्रेस
अदबी किरण
सान्ध्य दैनिक
ट्र टाइम्स दिल्ली आदि अखबारों
में रचनायें
विभिन्न साइट्स पर परमानेन्ट लेखिका इसके अतिरिक्त विभिन्न शैक्षिक शोध
पत्रिकाओं में लेख एवं शोध पत्र

❤❤❤आगरा मंच से जुड़ी
Blog Meri Dunia
mob 9412652484
8171248456

❤❤❤❤साझा संकलन
☀काव्योदय
☀गजल ए गुलदस्त
☀विहंग गीत
☀शब्दों का प्याला
email -madhuparashar2551974@gmail.com
रूचि –लेखन
कवितायें ,गजल , हाइकू लेख
100 से अधिक प्रकाशित

डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
75 Likes · 1 Comment · 656 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR.MDHU TRIVEDI
View all
You may also like:
ऊर्जा का सार्थक उपयोग कैसे करें। रविकेश झा
ऊर्जा का सार्थक उपयोग कैसे करें। रविकेश झा
Ravikesh Jha
तमाम उम्र अंधेरों ने मुझे अपनी जद में रखा,
तमाम उम्र अंधेरों ने मुझे अपनी जद में रखा,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कर्म यदि अच्छे हैं तो डरना नहीं
कर्म यदि अच्छे हैं तो डरना नहीं
Sonam Puneet Dubey
Confession
Confession
Vedha Singh
खत और समंवय
खत और समंवय
Mahender Singh
"अच्छा साहित्य"
Dr. Kishan tandon kranti
*एकांत*
*एकांत*
जगदीश लववंशी
भारत के
भारत के
Pratibha Pandey
साथ
साथ
Neeraj Agarwal
एक दिन हम भी चुप्पियों को ओढ़कर चले जाएँगे,
एक दिन हम भी चुप्पियों को ओढ़कर चले जाएँगे,
पूर्वार्थ
O CLOUD !
O CLOUD !
SURYA PRAKASH SHARMA
Cá độ qua 188bet.com, 64 bị cáo hầu tòa
Cá độ qua 188bet.com, 64 bị cáo hầu tòa
Cá độ qua 188bet.com
उड़ान
उड़ान
Saraswati Bajpai
कृष्ण सा हैं प्रेम मेरा
कृष्ण सा हैं प्रेम मेरा
The_dk_poetry
4495.*पूर्णिका*
4495.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
Piyush Goel
प्रेम और पुष्प, होता है सो होता है, जिस तरह पुष्प को जहां भी
प्रेम और पुष्प, होता है सो होता है, जिस तरह पुष्प को जहां भी
Sanjay ' शून्य'
मेरी धड़कनों में
मेरी धड़कनों में
हिमांशु Kulshrestha
नयी कोई बात कहनी है नया कोई रंग भरना है !
नयी कोई बात कहनी है नया कोई रंग भरना है !
DrLakshman Jha Parimal
विष का कलश लिये धन्वन्तरि
विष का कलश लिये धन्वन्तरि
कवि रमेशराज
कान्हा तेरी नगरी, आए पुजारी तेरे
कान्हा तेरी नगरी, आए पुजारी तेरे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मिलना तो होगा नही अब ताउम्र
मिलना तो होगा नही अब ताउम्र
Dr Manju Saini
★ आज का मुक्तक
★ आज का मुक्तक
*प्रणय*
सफलता तीन चीजे मांगती है :
सफलता तीन चीजे मांगती है :
GOVIND UIKEY
*जब कभी दिल की ज़मीं पे*
*जब कभी दिल की ज़मीं पे*
Poonam Matia
दाढ़ी में तेरे तिनका है, ओ पहरे करने वाले,
दाढ़ी में तेरे तिनका है, ओ पहरे करने वाले,
ओसमणी साहू 'ओश'
इश्क़  जब  हो  खुदा  से  फिर  कहां  होश  रहता ,
इश्क़ जब हो खुदा से फिर कहां होश रहता ,
Neelofar Khan
जीता जग सारा मैंने
जीता जग सारा मैंने
Suryakant Dwivedi
*आम (बाल कविता)*
*आम (बाल कविता)*
Ravi Prakash
सावन आने को है लेकिन दिल को लगता है पतझड़ की आहट है ।
सावन आने को है लेकिन दिल को लगता है पतझड़ की आहट है ।
Ashwini sharma
Loading...