*अच्छे-भले जी रहे थे, पर सहसा कटु संवाद हो गया (हिंदी गजल/ गीतिका)*
अच्छे-भले जी रहे थे, पर सहसा कटु संवाद हो गया (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
अच्छे-भले जी रहे थे, पर सहसा कटु संवाद हो गया
थाने और कचहरी का, फिर कोना-कोना याद हो गया
2
दुख को ही पकड़े रहे, रात-दिन गुमसुम बैठे-बैठे जब
बढ़ता रहा तनाव, एक दिन फिर भीषण अवसाद हो गया
3
सुधबुध जब हमने नहीं तनिक, ली पुस्तक-दस्तावेजों की
भरा हुआ भंडार कीमती, एक दिवस सब खाद हो गया
4
अच्छे जब लोग मिले, इस जग में छाया हर्ष अपरिमित
बुरे व्यक्तियों के मिलने से, मुॅंह का कड़वा स्वाद हो गया
5
अच्छे या बुरे संग का फल, सब को ही चखना पड़ता है
अच्छों से आनंद, बुरों से जीवन सब बर्बाद हो गया
6
धन-संपदा और पद-पदवी, दोनों के ही घर आई थी
सज्जन रहा नम्र ही लेकिन, दुर्जन को उन्माद हो गया
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451