अच्छे दिन
आएगें अच्छे दिन
ज़रा ठहरो तो सहीं
सपने होगें साकार
सपने सजाओं तो सही
अभी तो सत्ता का नशा है
होना तो अभी बाकी हैं
आएगें अच्छे दिन
ज़रा ठहरों तो सहीं
शासन की सत्ता-से
ऐसी छायी चुस्ती
इंसानों के सिर
नोंच रहे है कुत्ते
फिर भी कहते हैं
आएगें अच्छे दिन
ज़रा ठहरों तो सही
अच्छे दिन देने वाले
अच्छे दिन को नही समझते
महंगाई में छीपे जनता का
दर्द नहीं समझते
आएगे अच्छे दिन
ज़रा ठहरो तो सही
देश की गलियों में
सार्वजनिक सभाओ में
वादों की बरसातों से
बैठ गए संसद में
फिर भी कहते है-
आएगें अच्छे दिन
ज़रा ठहरों तो सही
बैठनें वाले बैठे हैं
घूमने वाले घूम-रहे हैं
बढनें वाले बढ-रहे हैं
गिरनें वाले गिर-रहे हैं
लड़ने वाले मर-रहे हैं
फिर भी कहते है-
आएगे अच्छे दिन
ज़रा ठहरों तो सहीं !
कहने की आदत नहीं
पर कह देता हूँ –
तुम जो कर रहे हैं
ये चल नही सकता
देश -सेवा से भरा
हृदय बदल नहीं सकता
अच्छे दिन , वादा है जनता-से
तुम इससे मूकर नही सकते
जन के मन-को ,जनता-से
तुम छल नहीं सकते !
आएगें अच्छे दिन
ज़रा ठहरों तो सही !!!
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