अच्छे दिन
रूठे हुए नजदीक आने लगे हैं
बुरे दिन अब दूर जाने लगे हैं।
अंधेरे में कट रही थी जिंदगी
उजाले के गीत सब गाने लगे है।
गम ने घर कर लिया था गरीबों में
खुशियों के बादल अब छाने लगे हैं।
छिन गया था जिनसे कमाया सब कुछ
वो भी अपना हक अब पाने लगे हैं।
डर नही किसी को अब बाहर निकलने में
गली गली में अब थाने लगे हैं।
कोयला चारा और पता नहीं क्या क्या
वो दाल और रोटी अब खाने लगे हैं।
पडोसी मुल्क भी अब डरा डरा सा है
जी हाँ अच्छे दिन अब आने लगे हैं।
–अशोक छाबडा