अच्छे दिन(कहानी)
अच्छे दिन (कहानी)
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“धीरे से बोलो ! दीवारों के भी कान होते हैं ।”दीनानाथ जी ने अपनी बेटी सीमा से बहुत हल्के से कहा ।
“पिताजी ! इतनी बड़ी खुशी की बात है, चुप भी तो नहीं रहा जाता ।” सीमा की आवाज इस बार भी थोड़ी ज्यादा थी।
“सत्तर साल से ज्यादा हो गए। काश हम लोगों ने कुछ साहस दिखाया होता और बँटवारे के समय अगर हिंदुस्तान चले जाते तो आज यह हालत न होती ।” इतना कहकर दीनानाथ जी अतीत की यादों में खो गए।
…….. सन सैंतालिस में पाकिस्तान बना था और एक रात में दीनानाथ जी का परिवार हिंदुस्तान की बजाए पाकिस्तान का नागरिक बन गया । अब भारत उनका पड़ोसी देश था और पाकिस्तान उनके देश का नामकरण हो गया था । उस समय दीनानाथ जी के बहुत से रिश्तेदार पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान भाग गए थे। बस यूँ समझ लीजिए कि किसी तरह जान बचाई। दीनानाथ जी को पाकिस्तान में रहना घाटे का सौदा तो लग रहा था , लेकिन बार-बार मन में एक ही विचार आ रहा था कि जमी- जमाई कपड़े की दुकान है। रहने के लिए अच्छी भली कोठी है । अब हिंदुस्तान में जाकर दर-दर की ठोकरें कहाँ खाते रहेंगे? सौभाग्य से आस पड़ोस के घर मुसलमानों के जरूर थे,लेकिन इतना भाईचारा था कि सब ने यही कहा कि रामेश्वर बाबू आप दीनानाथ को लेकर कहाँ जाओगे ? रामेश्वर बाबू दीनानाथ जी के पिताजी थे ।
रामेश्वर बाबू ने यही उचित समझा कि पड़ोसियों पर भरोसा कर किया जाए और पाकिस्तान में ही रहते रहें। वहीं बस गए। दीनानाथ की उस समय उम्र ही क्या थी! वहीं पला- बढ़ा ,शादी हुई । फिर कपड़े की दुकान पर बैठ गया ।
लेकिन सत्तर साल में दुनिया बदल गई। रोजाना कोई न कोई खबर आती थी कि वहाँ नौजवान लड़कियों का धर्म -परिवर्तन हो रहा है । स्थिति अच्छी नहीं थी। जब सीमा बड़ी हुई तो दीनानाथ जी उसे देख-देख कर सूखे पत्ते की तरह काँपते थे। पता नहीं क्या होगा मेरी बेटी का ! भारत में उनके कुछ रिश्तेदार जाकर बस गए थे। उनके बच्चे भी अच्छे काम धंधे और नौकरियों में लगे हुए थे । लेकिन दो देशों की अलग-अलग नागरिकता का प्रश्न रिश्तेदारी के मामले में बीच में आकर खड़ा हो गया था।
” अब नरेंद्र मोदी ने नागरिकता का कानून हमारे लिए बना दिया है और हम और भारत में रह रहे हमारे रिश्तेदार इस नर्क से छुटकारा पाकर भारत में रह सकेंगे। जो गलती सत्तर साल पहले हमने पाकिस्तान में रहकर की थी, वह सुधर जाएगी ।”-दीनानाथ जी ने कमरे की छत की तरफ निहारते हुए फुसफुसाहट के साथ कहा तो सीमा ने भी मुस्कुरा कर कह दिया” पिताजी ! हमारे तो अच्छे दिन लगता है ,आ गए ।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99 97 61 5451