अग्रोहा (गीतिका)
अग्रोहा (गीतिका)
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(1)
नई धरा हो नया गगन हो , बसाओ फिर से वही अग्रोहा
जहाँ न छोटा नहीं बड़ा हो, ले आओ फिर से वही अग्रोहा
(2)
हमारे राजा हों अग्र जी , हम बताएं खुद को सुअग्रवंशी
हृदय में भर दे जो गर्व गाथा, सुनाओ फिर से वही अग्रोहा
(3)
वही हो समरस समाज रचना ,गरीब कोई न हो कुटुंबी
हो एक रुपया हो एक ईंटा, दिलाओ फिर से वही अग्रोहा
(4)
रहित हों भेदों से गोत्र सारे , सभी अठारह हों एक जैसे
चले व्यवस्था यही जगत में, चलाओ फिर से वही अग्रोहा
(5)
अठारह यज्ञों की पुण्य धरती ,दया जो पशुओं के हेतु करती
गगन में नारे को शाकाहारी , गुँजाओ फिर से वही अग्रोहा
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99 97 61 54 51