अग्निवीर
कदम रखता हूँ चल पड़ता हूँ ,
रास्ते आसान हैं या कठिन ।
कभी नहीं ये मैं सोचता हूँ,
बस कदम रखता हूँ चल पड़ता हूँ ।।
हार होगी कि जीत मिलेगी,
मैं इनसब पर ध्यान नहीं देता ।
मेरा लक्ष्य सीधा वहीं रहता है,
जिस पथ पर पग ये चल पड़ता है ।।
कोशिश करूँगा तो मंजिल पाऊँगा ही,
नाम भी एकदिन कमाऊँगा ही ।
माना लालों की बोरियाँ नहीं मिलती,
पर सदा जगलाल भी तो पैदा नहीं होते ।।
वक्त कितना भी बुरा हो,
आखिर गुजर ही जाता है ।
अरसे बाद ही सही लेकिन,
मंजिल मिल ही जाता है ।।
अग्नि के पथ पर चलने का,
और चट्टानों से टकराने का ।
जो हौंसला ऐसा रखता है,
वही बलवीर कहलाता है ।।
जो ना चला इस पथ पर,
वो जीवनभर पछतायेगा ।
और रखेगा ऐसा हौंसला जो,
वो अग्निवीर कहलायेगा ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 14/06/2023
समय – 03 : 37 (शाम)