अगर सामने बैठो तुम वक्त कट जायेगा
ये उदासी का कोहरा यूंही छट जायेगा।
अगर सामने बैठो तुम वक्त कट जायेगा।।
नयनों की खिड़की से तुम्हे देखता ही रहूं।
तुम्हारे गेसुओ से सदैव ही खेलता ही रहूं।।
इसी तरह से मेरा सारा वक्त कट जायेगा।
ये उदासी का कोहरा यूंही छट जायेगा।।
तुम्हारे आगमन से मन को शांति मिली है।
मेरे दिल के चमन की हर कलि खिली है।।
अगर मुस्करा दो मेरा वक्त कट जायेगा।
ये उदासी का कोहरा यूंही छट जायेगा।।
तुम्हारे आने से घटा के बादल छट जायेंगे।
प्रेम के ये पौधे फिर से पनप भी जायेंगे।।
लहु से इसे सीचूंगा ये बड़ा भी हो जायेगा।
अगर सामने बैठो यूंही वक्त कट जायेगा।।
मै हूं कवि मेरी कविता बन जाओ तुम।
जुल्फो की चेहरे पर यू न लहराओ तुम।।
ये बे मौसम का बादल यूहीं बरस जायेगा।
ये उदासी का कोहरा यूंही छट जायेगा।
जीवन की पतंग कहीं यूहीं कट न जाए।
मांझे डोर के साथ कहीं ये लुट न जाए।।
उड़ेंगे ये अम्बर में ये वक्त कट जायेगा।
ये उदासी का कोहरा यूंही छट जायेगा।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम