अगर तू दर्द सबका जान लेगा….
अगर तू दर्द सबका जान लेगा
ख़ुदा तेरी रज़ा पहचान लेगा।
मिलेंगी ठोकरें बस राह में तब
बुजुर्गों का नहीं विज्ञान लेगा।
हक़ीकत को बना ले ढाल अपनी
वही होगा जो फिर तू ठान लेगा।
लगा मत बेवफ़ा इल्ज़ाम उस पर
वो दिल पर चोट भी नादान लेगा।
अभी तो बाजुओं में दम है उसके
वो आख़िर क्यों कोई अहसान लेगा।
मिलेगी तुझको मंज़िल भी यक़ीनन
अगर तू बात दिल की मान लेगा।
डराओ मत मुझे उन कातिलों से
फ़कीरों की कोई क्यूँ जान लेगा।
लुटा तो दूँ मैं सब कुछ उस की ख़ातिर
मगर है डर मेरा ईमान लेगा।
रज़ा बस इस “परिंदे” की यही है
कि वो इक झूमता बागान लेगा।