अगर इश्क़ के ये सितारे न होंगे
अगर इश्क़ के ये सितारे न होंगे
जहाँ में मुहब्बत के मारे न होंगे
वफ़ा का तराना वो लम्हा ख़ुशी का
हमें क्या पता था हमारे न होंगे
रहेंगे बगल झांकते ही हमेशा
अगरचे तुम्हारे इशारे न होंगे
नदी ख़ुद भी कैसे बचेगी भला फिर
नदी के अगर दो किनारे न होंगे
मदद एक-दूजे की मिलकर करें सब
न लाचार होंगे बिचारे न होंगे
बढ़ेगी सदा फिर तो दुश्मन की हिम्मत
अगर सरहदो पर दुलारे न होंगे
बहुत देर से रास्ते में खड़े हैं
चले कैसे जाते पुकारे न होंगे
कोई भी जगह है न दुनिया में ऐसी
जहां वक़्त के बहते धारे न होंगे
न आनन्द होंगे रहेंगी न ख़ुशियाँ
अगर आप जैसे सहारे न होंगे
– डॉ आनन्द किशोर