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23 Oct 2022 · 1 min read

*सड़‌क को नासमझ फिर भी छुरी-ईंटों से भरते हैं (मुक्तक)*

सड़‌क को नासमझ फिर भी छुरी-ईंटों से भरते हैं (मुक्तक)
______________________________
वो जिनके बोल मीठे हैं, हँसी के फूल झरते हैं
उन्हें सब चाहते हैं, प्रेम वह भी सबसे करते हैं
हमारी एक है मंजिल, हमारा एक है मालिक
सड़‌क को नासमझ फिर भी छुरी-ईंटों से भरते हैं
—————————————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

Language: Hindi
107 Views
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