अखंड साँसें प्रतीक हैं, उद्देश्य अभी शेष है।
अखंड साँसें प्रतीक हैं, उद्देश्य अभी शेष है,
पगों के छाले कह रहे, डगर तेरी विशेष है।
असत्य के इस आवरण में, सत्य तेरा वेश है,
असफ़लताओं को अवसरों में, बदलना हीं तो संदेश है।
युग का चरित्र क्या कहूँ, हृदय में सबके द्वेष है,
निश्छल मन को तिरस्कृत कर रहे, क्या उच्च ये निवेश है।
अपमान में औरों के, मिलता सुख एक विशेष है,
शब्दों के आक्रमण हो रहे,जिनमें विष का समावेश है।
संवेदनाओं को कुचल रहा, स्वार्थ का क्लेश है,
मानवता की शवशैया है, दम्भ का आवेश है।
माया रचित इस सृष्टि का, उस ब्रह्म में समावेश है,
वे शून्यता को छल रहे, जो पूर्णता का धर्मोपदेश है।
विपरीत धारा के चलेगा तू, ये सृष्टि का निर्देश है,
पीड़ा बना है तेरा सारथी, और कर्तव्य तेरे अध्यादेश है।
अन्धकार के गहन ग्रहण में, हीं होता साहसों का प्रवेश है,
विघ्नों से जो निर्भिक रहा तो, तुझे थामता गणेश है।