अक्ल का अंधा – सूरत सीरत
अक्ल का अंधा – सूरत सीरत
लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री
जगत में मति की गति निराली है ।
बिना बुद्धि के धाराशाई सब गरिमा धुँधलाती है ।
अक्ल का अंधा कहलाता है जब न काम विवेक करे ।
सूरत सीरत काम न आये जब नियति का साथ न मिले ।
धन वैभव की चमक बुझी – बुझी हो जाती है ।
समय के साथ बंधा है पैसा ईश्वर ही गुणशाली है ।
उसकी कृपा से सब कुछ मिलता बात यही याद दिलानी है ।
भूल न जाना मेरे भाइयों यही तत्व गुणकारी है ।
संयम रख कर जीवन जीना धेर्य कभी न खोना तुम ।
कर्म किए से सकल विश्व में भवसागर तर जानी है ।
बिन किस्मत अक्ल का अंधा कहलाता है आदमी ।
भरी दुनिया में अकेला पड़ जाया करता है आदमी ।
देख कर कलाकारी कलाकार की मैं ऐसा बौराया ।
जमीन पर चित्रकारी से पूरा नगर बसाया चित्रकार ने ।
करी अदबुद्ध कारीगरी ऐसी बनाई सीडियाँ उसने ।
उतरने को तत्पर हुआ अक्ल का अंधा आदमी ।
अनेकों चित्रकार त्रिकोणीय कला से अपनी तड़ग बनाते हैं ।
अच्छे भले मानस सच का समझ , धोखा खा जाते हैं ।
होते तो काफी समझदार है लेकिन बेबकूफ़ बन जाते है ।
जगत में वही लोग तो अक्ल का अंधा संज्ञा पाते हैं ।