अकेलापन
उम्र का ये पड़ाव कैसा है , जहाँ सब कुछ तो है फिर भी अकेलेपन का घाव दिल पे कैसा है !
अपना तो हर कोई है आंखो के सामने , फिर भी आंखों मे इक इंतजार कैसा है ।
चाहते तो हैं सबको बराबर इसी दिल से फिर भी ये चाहत का इक नया अंदाज कैसा है ।
बचपन से आज तक जो रोता था मै आंखो मे आंसुओ को लेकर, आज मेरा ये दिल ही दिल मे रोने का अंदाज कैसा है ।
जो कभी न बोल पाया अपने चाहने वालों से , वो आज बोलने को मेरा दिल तरसता है, ये आज अचानक मेरे दिल का हाल कैसा है !