अकेलापन
होता है सफर काँटो का,
पर दिखता सभी को फ़ूल हैं,
खोए रहते हैं खुद ही खुद में,
यही अकेलापन का उसूल हैं।
कहने को तो होते हैं महफिल में,
पर महफिल की खुशी उनकी भूल है,
मन में सवालों के समंदर है पर,
कोई जवाब देने वाले न कबूल है ।
लोग नमक छिड़कते हैं ऐसे ,
मन ही मन में चुभता शूल है,
लगे रहते हैं गिराने में नीचे,
मुँह पर कहते ,भाई तु अतुल हैं।
होता है सफर काँटो का,
पर दिखता सभी को फूल हैं,
खोए रहते है खुद ही खुद में,
यही अकेलापन का उसूल हैं।
✍️✍️खुशबू खातून