अकल
अकल
अकल की खेती की थी
एक दफे हमने भी
तीन बीघे जमीन में।
लहलहाते विरवे-पौध उगे,
लोंगो की आँखें कौंध उठे,
सचमुच, फसल बड़े बेहतरीन थे।
मगर अफसोस,
कि कटाई के पूर्व ही
मूसलाधर बारिश में
सारा फसल बह गया।
तिनका भी न बचा
और मैं,बिना अकल का खड़ा रह गया।
मन मसोसता,चीखता,रोता।
वरना
मैं भी आज अकल वाला होता।
-©नवल किशोर सिंह