अंधों के हाथ
अंधों के हाथ कभी जो लग
जाती किस्मत से कोई बटेर
तो वे इतराते घूमते ऐसे कि
जैसे हों वे धनाधिपति कुबेर
सही व्यवस्थाएं बनाने में उनका
कलेजा हो जाता है फांक फांक
फिर भी वे खुद को मानते हैं
प्रबंधन में औरों से चालाक
दूजों के दोष निहारते हर क्षण
करके दोनों नयनों में विस्तार
अपनी कमियों के लिए रखते
हर समय एक पे तर्क हजार
प्रभु हम पर करना कृपा रखना
ऐसे अंधों से सदैव दूर ही दूर
ताकि हमारे मानस में सदैव ही
उच्च हौसला कायम रहे भरपूर