अंधेरों का शहर
******* अंधेरों का शहर ********
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अंधेरों के शहर में दीप जलाता रहा
भटके राहगीरों को राह दिखाता रहा
जिसका भी भला किया बुराई मिली
बुराइयों के छत में झरोखे बनाता रहा
कर भला आ बुरा उक्ति चरितार्थ हुई
अपकार के ढेर में उपकार ढ़ूंढ़ता रहा
जिसे दिखाई राह वो भूलता ही गया
उम्र भर सफर में रास्ता दिखाता रहा
अंजुमन में खुद को अकेला ही पाया
मदिरालय मदिरापान में लगाता रहा
शेख़ी के दौर में मौलिकता नदारद है
खरेपन सोच वाला नित्य गिरता रहा
मनसीरत सेवापथ मे तल्लीन अग्रसर
धोखेबाजी टोल में सदैव घिरता रहा
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)