अंधेरा हमें ख़ुद हटाना पड़ेगा…!
अंधेरा हमें ख़ुद हटाना पड़ेगा
उजाला दरीचों से लाना पड़ेगा।
मुहब्बत की जब तक रवानी रहेगी
बहारों को गुलशन सजाना पड़ेगा।
नज़ाकत से’ मेरी ख़ता माफ़ कर दो
यूँ कब तक हमें सर झुकाना पड़ेगा।
अगर बेगुनाही जो साबित हुई तो
इसी बज़्म में फिर बुलाना पड़ेगा।
ख़यालों में जब जब मुलाकात होगी
तुम्हें राज़ दिल का बताना पड़ेगा।
बिखर सा गया हूँ मैं किरचों में यारो
मुझे मिल के तुमको उठाना पड़ेगा।
मेरे दर्द की इंतहा चाहिए ग़र
ग़ज़ल को मेरी गुनगुनाना पड़ेगा।
यक़ीनन मेरे यार मंजिल मिलेगी
पसीने में खूं को बहाना पड़ेगा।
अगर चाहते हो “परिंदे” से मिलना
तुम्हें शम्अ को फिर बुझाना पड़ेगा।
पंकज शर्मा “परिंदा”
खैर ( अलीगढ़ )
09927788180