अंधेरा मन का
क्या हुआ?
जो चारों ओर अंधेरा नज़र आ रहा है
या फिर कोई तुझे विचार सता रहा है
तू खोल आंखें
इक बार ख़ुद को देख तो सही
तेरे अंदर भी,
इक उम्मीद का दीया जल रहा है
ढूंढ थोड़ा नज़दीकी से,
इक तेरा सपना भी पल रहा है
चारों ओर चक्कर लगाने से,
तुझे सिर्फ़ तकलीफ़ हासिल हुई है
अब एक बार ख़ुद में भी झांक
अपनी खूबियों को पहचान
क्यों दर – बदर ठोकरों में,
ख़ुद को उलझा रखा है
बेवजह ख़ुद को बहला रखा है
अपने सपनों को आवाज़ दे
उन्हें हकीकत में आगाज़ दे
लोगों का क्या है?
वो तो वक्त – बेवक्त बदलते रहते हैं
कभी अच्छा तो कभी बुरा कहते रहते है
उन सब बातों को पीछे छोड़ दे
तू अपनी पहचान को अपनी तरफ़ मोड़ दे
अब इरादों को मजबूत करने की बारी है
अंक उम्र के बढ़े है
हिम्मत तेरी आज भी जवां है
तू ख़ुद से भर अपनी उड़ान
और अपनी पहचान को पंख दे
आसमान को छू लेने की हिम्मत कर
अरे! तू हासिल कर सकती है
सबकुछ हासिल कर सकती है
बस अपने मन के भय को तू दूर कर
जो अंधेरा नज़र आ रहा है उसमें
उजाला भी आएगा
कल को सुनहरे अक्षरों में
तेरा नाम भी लिखा जायेगा।
रेखा खिंची ✍️✍️