~~ अंधी और बदनाम गलीआं ~~
कुछ तो वजह होगी,
जो उस ने जिस्म बेच दिया अपना
उस के दिल से पूछो कभी
की क्या क्या नहीं खो दिया अपना !!
बड़ी कडवाहट लेकर
वो खुद को धकेल चुकी है
उस बदनाम गली में
अपना मन भी बेच चुकी है !!
वकत के हाथो वो
बेहद लाचार जो हुई है
सपनो को मन में दबा कर
घर से भी वो बेघर हुई है !!
पर आज उस काम को
न जाने कितनी कर रही हैं
वो तो जिस्म बेच रही
खुद के मन को हार कर
पर तुम तो अपने शौंक की
खातिर हद से गुजर रही हो !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ