अंधा बांटे रेबड़ी, फिर फिर अपनों के देवे – कहावत/ DR. MUSAFIR BAITHA
कुछ कहावतें न तो तर्क की कसौटी पर खरी उतरती हैं न ही किसी स्वस्थ भावना अथवा लोक कथा पर आधारित होती हैं। ऐसी कहावतों का त्याग करना ही सही चुनाव है।
ऐसी ही एक बेपेंदी की कहावत साबित होती है – “अंधा बांटे रेबड़ी, फिर फिर अपनों के देवे।”
यह कहावत तर्क की कसौटी पर दम तोड़ जाती है।
कारण….
एक,
अंधा है तो जो भी सामने आएगा उसको देगा, न कि फिर फिर अपने को।
दूसरे,
अंधा को कहावत ने बेईमान साबित किया है, कहावत बनाने वाला अंधों के प्रति भारी दुराग्रह पर है।