संतान
हमारे जनशून्य से हयात में ,
उल्लासों की वृष्टि लाता है ,
जिसको मॉंगते दरखास्तों में समग्र ,
सबके हयात का आश्रय है जो ,
वही हो तो होती है संतान।
मृदुल वसंत का आगमन है जो ,
उदित भास्कर का कगार है जो ,
हमारे श्वसन की जेवरी है जो ,
हयात की सुवर्ण नक्षत्र है जो ,
वही तो होती है संतान।
इसके सिवा गृह,आंगन भी ,
लगता सुना – सुना सा है ,
जिसके आनन के प्रताप से ,
गृह प्रज्ज्वलित चमकता है ,
वही तो होती है संतान ।
सबसे बड़ी संपदा हमारी ,
चित्तों – मेधा में बसी हमारी ,
जो सकल जगती में हमें ,
लगती सबसे प्रियदर्शी हैं ,
वही तो होती है संतान।
हमारे नस्ल के मर्यादा को ,
जो भुवन में व्यापता है ,
शरीरांत के पश्चात भी ,
जो निशानी कूल जाते हैं ,
वही तो होती है संतान।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या