अंधविश्वास का पुल / DR. MUSAFIR BAITHA
’भारत का संविधान’ में उल्लिखित नागरिकों के दस मूल कर्तव्यों में से एक कहता है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का अपने में विकास करे। इस सामान्य से लगते क्रांतिकारी प्रावधान पर यदि हर नागरिक अमल कर ले तो हमारा समाज कूढ़मग्ज़ से वैज्ञानिक मन हो जाएगा। किन्तु इस वैज्ञानिक-तकनीकी ज्ञान से लोडेड समय में भी हमारे देश में अन्धविश्वासपरक वाह्याचारों एवं धर्म भावना का बढ़ता आलोड़न तो उलट सत्य ही सामने रखता है। झारखंड में स्थित बाबाधाम कहे जाने वाले देवघर के शिव मन्दिर समेत देश के बड़े बड़े मन्दिरों में उमड़ती रिकार्डतोड़ भीड़ के समान अनेक अवैज्ञानिक अन्धविश्वासी घटनाएं और जोड़ पकड़ रही हैं जो हमारे संविधान की उक्त भावना को मुंह चिढ़ाती हैं। अपने देश में आज नए सिरे से आस्थावादी लोग बुद्धि, विवेक, तर्क, विज्ञान, भौतिक यथार्थ आदि को नजरंदाज़ कर सामजिक जड़ता एवं यथास्थितिवाद के पोषण के साथ हैं। कुछ लोग एवं संस्थाएं तो इस उलटी गति के पक्ष में बाजाब्ता संगठित अभियान ही चला रहे हैं। राम के मिथक को हिन्दू जनमानस में मादकता से घोलकर तो देश की एक ‘रामपार्टी’ शून्य से चलकर सत्ता एवं उठान के शिखर को चूम रही है। विडंबना है कि काल विज्ञान का, पर उसका नहीं, उसका सहारा ले धर्म धंधा चल निकला है! ‘राम सेतु’ (आदम का पुल व नल सेतु नाम से भी जाना जाता है यह) का धार्मिक बखेड़ा भी एक ऐसा ही बुद्धि-विवेक का हरण करने वाला खेल है। खेल बड़ा है क्योंकि राजनीतिक है। आइये, इस प्रसंग को विस्तार से देखें और विवेकवादी नजरिये से खंगालें।
आरएसएस प्रभाव की भगवा भारत सरकार कुछ दिनों से तमिलनाडु के रामेश्वरम के तटवर्ती क्षेत्र में एक महत्वाकांक्षी परियोजना ‘सेतु समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट’ (प्रचलित हिंदी नाम – ‘सेतु समुद्रम परियोजना’) पर काम कर रही है। इस परियोजना को पूरा करने के क्रम में ‘राम सेतु’ नामक समुद्री ढाँचे को आंशिक रूप से तोड़ना पड़ेगा। परियोजना के पूरा होने के बाद पश्चिमी तट और बंगाल की खाड़ी के बीच सीधा जलपोत लगभग 650 कि. मी. (350 समुद्री मील) की लम्बी दूरी तय करते हुए श्रीलंका का चक्कर लगा कर ही पश्चिमी तट से बंगाल की खाड़ी तक आवाजाही कर पाते हैं। नया रास्ता खुल जाने से यह दूरी कोई 400 कि. मी. घट जाएगी। फलस्वरूप, समुद्र तटीय प्रदेशों, खासकर तमिलनाडु को व्यापक आर्थिक व औद्योगिक लाभ मिलने की सम्भावना है। लेकिन इस परियोजना के पूर्ण होने में एक अड़चन आ खड़ी हुई है। उस क्षेत्र में अवस्थित ‘राम सेतु’ नाम से अभिहित कथित जलसेतु नामक ढाँचे को अक्षुण रखने, क्षतिग्रस्त नहीं करने के प्रश्न पर कुछ हिन्दू धार्मिक संगठन, कथित साधु-संत एवं न्यस्त स्वार्थ वाले भगवा खेमे के पर्यावरणप्रेमी आन्दोलन की मुद्रा में हैं। विरोध हिन्दू आराध्य राम के नाम पर ही है। यह विरोध दक्षिण से शुरू हुआ और अब वाराणसी एवं अयोध्या जैसे उत्तर भारतीय धर्मपीड़ित नगरों में पसर रहा है।
परियोजना पर गर्भ-विचार 1860 के औपनिवेशिक भारत में ही ‘इंडियन मैरिन्स’ कमांडर के ए. डी. टायर ने दिया था। वैसे परियोजना पर सरकारी विचारों की सुगबुगाहट गुलाम और स्वतंत्र भारत में होती रही है, पर निर्णायक घड़ी पिछली भाजपा नीत ‘धार्मिक’ सरकार के समय में इस परियोजना को मंजूरी मिली और बाद की सरकार में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह द्वारा 02 जुलाई, 2005 को इसमें विधिवत हाथ कगा। इस मुद्दे पर भाजपा के हाथ बंधे रहने के कारण ज्यादा बवाल नहीं हो पाया, वर्ना, यह मुद्दा भी अयोध्या के कलंकित रामजन्म भूमि आन्दोलन (जिसकी परिणति व्यापक अल्पसंख्यक नरसंहार में हुई) की तरह ही राजनीतिक जामा पहन लेता। वैसे, कुछ धर्म संगठन ‘रामकर्मभूमि आन्दोलन’ नाम से इसे उछालने की कोशिश टी कर ही रहे हैं।
सेतु निर्माण के पक्ष-विपक्ष पर बात करें तो इस परियोजना से कोई चिंताजनक पर्यावरणीय अथवा पारिस्थितकीय क्षति की सम्भावना नहीं बनती। जो निजी पर्यावरण संगठन या पर्यावरण हितैषी इस परियोजना के विरोध में खड़े हो रहे हैं, उनकी सदिच्छा संदिग्ध है। अमेरिकी अन्तरिक्ष संस्था ‘नासा’ के सैटेलाइट आधारित वर्ष 2003 में जारी कथित ‘रामसेतु’ के जिन चित्रों के आधार पर रामनामी संत-महंथ व भक्तजन उछल-कूद मचा रहे हैं, उनके लिए ‘नासा’ का टटका स्पष्टीकरण मूर्च्छा लाने वाला है। उसने अपने उपग्रह-चित्रों एवं उसके अध्ययनों से इस सेतु के मानव निर्मित ढांचा होने को एकदम से नकार दिया है। ‘समुद्र सेतु निगम’ ने 26 जुलाई, 2007 को ‘नासा’ भेजे अपने ‘ई-मेल’ में यह स्पष्ट करने को कहा था कि यह ढांचा मानव निर्मित है या नहीं? मालूम हो कि पुरातात्विकों एवं भूगर्ववेत्ताओं के मुताबिक प्रश्नगत ‘रामसेतु’ दरअसल, चूने के पत्थरों के ढूहों या टीलों (shoals) की एक शृंखला है जो श्रीलंका के निकटवर्ती मन्नार के द्वीप समूहों तथा रामेश्वरम तट के बीच की 48 कि. मी. की लम्बाई में फैली हुई है।
महाभारत, वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, वेद-पुराण जैसे धार्मिक ग्रन्थों की शरण गहने पर हमें जितना मुंह उतनी बातें मिलती हैं। इनके हवाले से उठाए गये तथ्यों की धैर्यपरक वस्तुनिष्ठ छानबीन करने से ‘रामसेतु’ के अस्तित्व को पचाना मुश्किल है। इस सेतु के आकार-प्रकार व उम्र के सम्बन्ध में प्रदत्त विरोधाभासी सूचनाओं में छत्तीस का आंकड़ा है। राम के जन्मकाल और कथित सेतु की आयु के आधार पर भी यही सिद्ध होता है कि मिथकीय राम ने इसका निर्माण नहीं कराया था।