अंदाज़ – ऐ – मुहोबत
शिकायत भी करें और इल्जाम भी लगाए क्या-क्या,
कोई पूछे उनसे उनका यह अंदाज़ ऐ मुहोबत है क्या ।
कुछ कहें उनसे तो मुश्किल, न कहें तो मुश्किल हाय!
कशमकश में रहे नन्हा सा, दिल यह इंसाफ है क्या?
न इकरार करते हैं न इंकार ही करते हैं, ऐसे है वो ,
जानेमन ,जाने जां कहे उन्हें या फिर बेवफा कहें क्या?
अभी हैं आपकी जिंदगी में, कल हो न हो मालूम नहीं,
कद्र कर लो अभी वरना रुसवा हो तो करोगे क्या ?
न पुकारो बहारों को तो वह भी लौट जाया करती है,
इशारा हमारा समझ लो, इससे ज्यादा हम कहें क्या?
फिर न करना कोई गिला और न कोई शिकवा ‘अनु’ से,
ओढ़ लिया जब कफन, फिर कुछ गुंजाइश बचती है क्या?