अंतहीन सफर
चले जाना है अंतहीन सफर पे
सभी को स्मृतियां भेंट देकर
नियति यही है गर जन्म लिया है
सांसे तो ठगिनी हैं
अपने मन की करती हैं
कर्मों कि छवि काया बन कर रह जाती है
देह दिवंगत हो जाता है
विचार विचरण करते रहते हैं
विचार चिरायु होते हैं
सुख़ दुःख मंत्रणा करते रह जाते हैं
और हम फिर से सब कुछ भूल कर निकल पड़ते हैं अपने सफ़र पे
स्मृतियां बटोरने !!
– विवेक जोशी ”जोश”