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21 Aug 2016 · 1 min read

अंतर्मन में जब बलवा हो जाता है

अंतर्मन में जब बलवा हो जाता है
रो लेता हूँ मन हल्का हो जाता है

कैरम की गोटी सा जीवन है मेरा
रानी लेते ही ग़च्चा हो जाता है

रोज़ बचाता हूँ इज्ज़त की चौकी मैं
रोज़ मगर इस पर हमला हो जाता है

कैसे कह दूँ अक्सर अपने हाथों से
करता हूँ ऐसा, वैसा हो जाता है

पीछे कहता रहता है क्या-क्या मुझको
मेरे आगे जो गूंगा हो जाता है

उसकी शख्सियत में मक़नातीस है क्या
जो उससे मिलता उसका हो जाता है

उस दम महँगी पड़ती है तेरी आदत
सारा आलम जब सस्ता हो जाता है

ठीक कहा था इक दिन पीरो-मुर्शिद ने
धीरे-धीरे सब अच्छा हो जाता है
नज़ीर नज़र

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