अंतर्मन के एहसास मैं छाया की प्रतिछाया
प्रवीण, नाम और ये काया
छाया हो तुम ,प्रेम की मेरी
मैं छाया की प्रतिछाया
युगों युगों से जीते आये
जिस पावन ‘अनाम’ को हम
समय की सीमा लांघ लांघ वो
फिर फिर जीवन बन आया
छाया हो तुम ,प्रेम की मेरी
मैं छाया की प्रतिछाया
आते जाते काले बादल
आंधी तूफां भी अक्सर
साथ ये सूरज जैसा अपना
कोई न विचलित कर पाया
छाया हो तुम ,प्रेम की मेरी
मैं छाया की प्रतिछाया
साँसों में तेरी सांसें हैं
धड़कन में धड़कन तेरी
नहीं है मुझमें ऐसा कुछ भी
जहाँ नहीं तुझको पाया
छाया हो तुम ,प्रेम की मेरी
मैं छाया की प्रतिछाया